'लीची के बुखार' से बेहाल थोक विक्रेता, सस्ते दाम पर बेचने को मजबूर
बिहार में चमकी बुखार से बच्चों की मौत का आंकड़ा अब 150 के पार पहुंच गया है. मुजफ्फरपुर में हो रही बच्चों की मौत के लिए लीची से निकलने वाले जहरीले पदार्थ को दोषी माना जा रहा है. चमकी बुखार की वजह से लोग लीची खरीदने से कतरा रहे हैं, जिसका सीधा असर किसानों और थोक विक्रेताओं पर भी साफ नजर आ रहा है.
बिहार में पिछले साल 1.50 लाख टन लीची का उत्पादन हुआ था. जबकि मौसम किसानों के पक्ष में होने की वजह से इस बार 3.50 लाख टन लीची का उत्पादन हुआ है. इसमें 80,000 टन लीची का उत्पादन अकेले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुआ. लेकिन रिकॉर्ड उत्पाद होने के बावजूद भी लोग लीची खरीदने को तैयार नहीं है.
मुजफ्फरपुर में पिछले साल थोक विक्रेताओं को लीची पर 10 रुपये प्रतिकिलोग्राम से ज्यादा का भाव मिला था. वहीं, इस बार बाजार में स्थिति काफी खराब है. इस साल थोक विक्रेताओं को लीची पर 7-8 रुपये का भाव भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा है. लीची की अच्छी खेती होने की वजह से किसानों और थोक विक्रेताओं को इस बार बड़े मुनाफे की उम्मीद थी.
हिमाचल प्रदेश और शिमला जैसे ठंडे इलाकों में लीची के सबसे ज्यादा खरीदार होते हैं, लेकिन इस बार यहां भी बाजारों में इसका धंधा ठप पड़ा है. ज्यादातर दुकानदारों ने तो थोक विक्रेताओं से इसे खरीदना भी बंद कर दिया है. बता दें कि 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. इसलिए परिजन इसे खरीदने से कतरा रहे हैं
बिहार से बाहर लीची का हाल-
लीची के दाम में गिरावट सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश में ही देखने को मिल रही है. जबकि मुंबई, दिल्ली और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में लोग अभी भी इसे खरीद रहे हैं. दिल्ली में लीची का भाव जहां 130 रुपये हैं, वहीं मुंबई के बाजारों में यह 150 रुपये में बिक रही है. चेन्नई में इसका दाम सबसे ज्यादा 200 रुपये किलो है.
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